सरसों-सोयाबीन तेल खरीदने से पहले जान ले नये दाम, हो गया हैं सस्ता
आम गिरावट के रुख के बीच सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पाम (सीपीओ) एवं पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट रही.

बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्यतेल, तिलहन कीमतों में चौतरफा गिरावट का रुख रहा और सभी खाद्यतेल तिलहनों के दाम नुकसान के साथ बंद हुए. देश के तेल तिलहन कारोबार, सस्ते आयातित खाद्यतेलों की गिरफ्त में है जिसकी वजह से मौजूदा समय में सरसों तेल तिलहन जैसे अन्य देशी तेल बाजार में खप नहीं रहे हैं. आम गिरावट के रुख के बीच सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पाम (सीपीओ) एवं पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट रही.
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मंडियों में बढ़ने लगी सरसों की आवक
सरसों की आवक मंडियों में बढ़ने लगी है और सस्ते आयातित तेलों की मौजूदगी में सरसों की लिवाली कम है और अधिकांश जगहों पर सूरजमुखी बीज की तरह सरसों तिलहन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे चले गये हैं. तीन-चार माह पहले हरियाणा में सहकारी संस्था नाफेड ने खुद सूरजमुखी बीज की बिक्री एमएसपी से नीचे भाव पर की.
सूत्रों ने कहा कि किसानों की इस बेबसी को दूर करने की कोशिश के तहत सरकार ने सरसों फसल की खरीद नाफेड जैसी सहकारी संस्थाओं के द्वारा कराने का सोचा है. सूत्रों ने कहा कि पिछले अनुभवों के आधार पर नाफेड के द्वारा ज्यादा से ज्यादा 15-20 लाख टन सरसों की खरीद होने की उम्मीद है और ऐसे में बाकी सरसों का क्या होगा? नाफेड अगर 15-20 लाख टन सरसों खरीद भी ले तो वह स्टॉक की तरह पड़ा रहेगा और सरसों की अगली बिजाई के समय इस स्टॉक का हवाला देकर सट्टेबाजी बढ़ेगी. नाफेड की जगह अगर अन्य सहकारी संस्था, हाफेड सरसों की खरीद करती तो हाफेड के पास हरियाणा में अपने दो तेल संयंत्र है जहां सरसों की पेराई कर तेल ग्राहकों को उचित दाम में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से उपलब्ध कराया जा सकता था.
सस्ते आयातित तेलों की भरमार के कारण सरसों, सोयाबीन और बिनौला तेल तिलहन बाजार में खप नहीं रहे और सरकार को त्वरित कार्रवाई कर आयातित तेलों पर आयात शुल्क अधिक से अधिक करने के बारे में सोचना होगा. जब देश में उत्पादन होने वाला लगभग 35 प्रतिशत तेल नहीं खपेगा तो देश किस तरह आत्मनिर्भर बन पायेगा? इसके लिए सरकार को तेल तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ ही साथ देशी तेल तिलहनों के बाजार विकसित करने की ओर भी गंभीरता से सोचना होगा और सारी नीतियां इसको ध्यान में रखकर बनानी होगी. केवल और केवल तभी हम सच्चे मायने में तेल तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ पायेंगे.
सरसों के दाने हुए महंगे
सूत्रों के मुताबिक, पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 120 रुपये टूटकर 5,300-5,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ. समीक्षाधीन सप्ताहांत में सरसों दादरी तेल 320 रुपये घटकर 10,980 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ. वहीं सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें भी क्रमश: 30-30 रुपये घटकर क्रमश: 1,750-1,780 रुपये और 1,710-1,835 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं.
सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज के थोक भाव भी क्रमश: 70-70 रुपये घटकर क्रमश: 5,240-5,370 रुपये और 4,980-5,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए.
इसी तरह, समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल के भाव क्रमश: 440 रुपये, 280 रुपये और 1,730 रुपये की भारी हानि के साथ क्रमश: 11,550 रुपये, 11,300 रुपये और 9,700 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए.
समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों के भाव में भी गिरावट रही. मूंगफली तिलहन का भाव 50 रुपये टूटकर 6,775-6,835 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ. समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 100 रुपये की हानि के साथ 16,600 रुपये प्रति क्विंटल और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 15 रुपये के नुकसान के साथ 2,545-2,810 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ.
सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 230 रुपये टूटकर 8,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ. जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 150 रुपये टूटकर 10,400 रुपये पर बंद हुआ. पामोलीन कांडला का भाव भी 190 रुपये की गिरावट के साथ 9,450 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ.
देशी तेल-तिलहन की तरह बिनौला तेल भी समीक्षाधीन सप्ताह में 180 रुपये की गिरावट के साथ 9,800 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ.
(भाषा इनपुट के साथ)