मई की शुरुआत से ही देश के कई हिस्से भीषण गर्मी की चपेट में आ चुके हैं, जबकि दूसरी ओर भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने प्रशासन और आमजन की चिंता बढ़ा दी है। इन दोनों परिस्थितियों ने खासतौर पर शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित किया है। दिल्ली और पश्चिम बंगाल में गर्मी की छुट्टियों को तय समय से पहले लागू कर दिया गया है। वहीं, सुरक्षा कारणों के चलते मॉकड्रिल और वर्चुअल क्लासेस की शुरुआत हो चुकी है। देश के बड़े हिस्से में अब स्कूलों के संचालन को लेकर नए निर्देश लागू कर दिए गए हैं।
दिल्ली सरकार ने राजधानी के सरकारी स्कूलों में 11 मई से 30 जून तक कुल 51 दिनों की गर्मी की छुट्टियों की घोषणा की है। हालांकि, यह आदेश निजी स्कूलों पर लागू नहीं होता। शिक्षा निदेशालय ने साफ किया है कि यदि मौसम का रुख ऐसा ही बना रहा, तो छुट्टियों की अवधि को और बढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्रों की पढ़ाई पर असर न पड़े, कक्षा 9वीं, 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए 13 मई से 31 मई तक सुबह 7:30 से 10:30 बजे तक रेमेडियल क्लासेस कराई जाएंगी। इन कक्षाओं में गणित और विज्ञान अनिवार्य होंगे, जबकि तीसरा विषय स्कूल की आवश्यकता के अनुसार तय किया जाएगा।
वहीं दूसरी ओर, दिल्ली में बढ़ते सुरक्षा खतरे को देखते हुए 660 सरकारी स्कूलों और 40 बड़े बाजारों में आपातकालीन मॉकड्रिल की तैयारी की जा रही है। इसका उद्देश्य है कि संभावित खतरे की स्थिति में छात्रों, शिक्षकों और आम नागरिकों को सजग और तैयार रखा जाए। सुरक्षा एजेंसियों ने राजधानी को हाई अलर्ट पर रखा है और हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रखी जा रही है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने भी स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए पहले से घोषित गर्मी की छुट्टियों को एक सप्ताह पहले यानी 9 मई से लागू कर दिया है। यह निर्णय मौसम विभाग की चेतावनी और सुरक्षा एजेंसियों के इनपुट को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। इसका उद्देश्य किसी भी प्रकार की अनहोनी से पहले स्कूलों को बंद कर छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
इस बीच दिल्ली के कई बड़े निजी स्कूल जैसे डीपीएस वसंत कुंज, इंद्रप्रस्थ वर्ल्ड स्कूल (पश्चिम विहार) और क्वीन मेरी स्कूल ने स्थिति को गंभीर मानते हुए वर्चुअल क्लासेस की शुरुआत कर दी है। इन संस्थानों का कहना है कि छात्रों की सुरक्षा सर्वोपरि है, और इसलिए एक दिन की भी देरी किए बिना ऑनलाइन शिक्षा मोड अपनाया गया है। इस पहल से यह भी स्पष्ट हो गया है कि स्कूलों ने न केवल तकनीकी रूप से खुद को तैयार रखा है बल्कि आपातकालीन परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता भी दिखा दी है।