Mahakumbh 2024: कुंभ मेले का इतिहास बहुत ही रोचक और पुराना है। महाकुंभ का आयोजन हर साल नहीं बल्कि 12 साल में एक बार होता है। यह महापर्व देश में चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित होता है: हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, और उज्जैन। इनमें से नासिक और उज्जैन में हर साल कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। प्रयागराज में पिछला महाकुंभ 2013 में हुआ था, और अगला महाकुंभ 2025 में आयोजित किया जाएगा।
महाकुंभ 12 साल में क्यों होता है? (12 saal mein kyu lagta hai Mahakumbh )
कुंभ मेले का इतिहास लगभग 850 साल पुराना माना जाता है, जिसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। महाकुंभ में दुनिया भर से लोग शामिल होते हैं। ज्योतिष के अनुसार, कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों की स्थिति पर आधारित है, विशेषकर बृहस्पति के कुम्भ राशि में प्रवेश और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश पर। बृहस्पति एक राशि में लगभग बारह माह रहते हैं और बारह वर्षों में बारह राशियों का भ्रमण पूरा करते हैं। इस प्रकार, बृहस्पति की बारह वर्षों की पुनरावृत्ति कुंभ मेले का मुख्य आधार है।
समुद्र मंथन से हुई शुरुआत
कथाओं के अनुसार, कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन के समय से मानी जाती है। जब देवताओं और राक्षसों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था, तब विष और अमृत निकले। विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया और अमृत को देवताओं ने। अमृत के घड़े को लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिव्य दिनों तक लड़ाई चली, जो मनुष्यों के लिए 12 साल के बराबर है।
कुंभ और 12 अंक का महत्व
देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के समान होते हैं, इसलिए महाकुंभ हर बारह साल बाद मनाया जाता है। समुद्र मंथन के दौरान 12 दिव्य दिनों तक चले युद्ध के कारण ही कुंभ मेला 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इस अवधि के दौरान नदियों का पानी अमृत में बदल जाता है, और यही कारण है कि तीर्थयात्री पवित्रता और अमरता के लिए कुंभ मेले में स्नान करने आते हैं।
चार स्थानों का निर्धारण
पौराणिक कथा के अनुसार, अमृत के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 वर्षों तक संग्राम चला। इस संग्राम में अमृत की बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरीं: प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक। यही चार स्थान कुंभ मेले के आयोजन के लिए प्रसिद्ध हैं।